Tuesday, March 17, 2009

मोदी का नया वर्ज़न वरुण गाधी

"अगर किसी ग़लत तत्त्व के आदमी ने , किसी हिंदू पर हाथ उठाया या हिन्दुओं ...,ये समझे की ये कमजोर है ,उनके पीछे कोई नही है ...मै गीता की कसम खा कर कहता हूँ कि मै उस हाथ को काट डालूँगा "
ये शब्द किसी और के नही बल्कि स्व .संजय गाधी एवं मेनका के सुपुत्र और भाजपा के युवा नेता वरुण गाधी के है । यह देश के लिए दुर्भाग्य है कि ऐसे सांप्रदायिक तत्वों को हमें झेलना पड़ता है । इन्हे गाधी नेहरू परिवार का वारिस कहा जाए या ९० के दौर में राम मन्दिर के नाम पर सांप्रदायिक माहौल बनाने वाले अडवाणी कि परम्परा का वाहक । भाजपा को जब कोई मुद्दा नही सूझता है तो चुनाव के पहले धर्मं आधारित राजनीति शुरू कर देती है ।
आडवानी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती,कल्याण सिंह सहित वर्तमान में नरेन्द्र मोदी और विनय कटियार जैसे लोग सांप्रदायिक सदभाव बिगाड कर सत्ता का सुख भोगते रहते है । वरुण गाधी के इतिहास पर नज़र डाली जाए तो पता चलता है कि इन्होने लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स से कानून और अर्थशास्त्र कि पढाई कि इनकी रास्ट्रीय सुरक्षा और कविता पर पुस्तक भी आई है । ऐसे में यह ताज्जुब का विषय है कि इतना पढ़ा हुआ व्यक्ति भी सांप्रदायिक है ! इससे एक बात स्पस्ट होती है की देश के नेता यह जान चुके है की चुनाव में जीतने का सबसे अचूक मंत्र यही है ।
वरुण गाधी ने पीलीभीत में अभी तक तीन 'हिंदू सम्मलेन ' को संबोधित कर चुके है । २२ फरवरी को लालौरी खेरा ,६ मार्च को दालचंद और ८ मार्च को बार खेरा । जिसमे बारी -बारी से वरुण ने 'जय श्री राम ' और धर्म विशेष का सहारा लेकर अपनी चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश की । भाजपा का मौन इस बात की ओर इशारा करता है कि उसकी तरफ़ से मूक सहमति है ।इतना ही नही गाधी परिवार का माहौल बिगाड़ने का पुराना इतिहास रहा है । लोकतंत्र का काला अद्याय इमरजेंसी में वरुण के पिता स्व.संजय गाधी ने किस तरह सत्ता का दुरुपयोग किया था यह किसी से छुपा नही है ,इन्द्रा गाधी की हत्या के बाद राहुल गाधी का कथन "जब बड़ा पेड़ गिरता है ,धरती हिलती है " के द्वारा सिखों पर हुए कत्लेआम को सही ठहराना कहा तक उचित था ! ९० के दौर में एक बार फिर बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाकर राजीव गाधी ने बाबरी विध्वंस का मार्ग प्रसस्त किया था । और अब वरुण का यह विचार उसी के आगे का रास्ता है !
अभी तक आडवानी,सोनिया कि प्रतिक्रिया न आना लोकतंत्र का मखौल उड़ा रहा है। जनता को यह बात पूरी तरह समझ लेनी चाहिए कि राजनीति के इन सौदागरों से बचना होगा और चुनाव में अपनी कड़ी प्रतिक्रिया से अमन चैन बिगाड़ने वालों के मुह पर जोरदार तमाचा जड़ना होगा ।
नरेन्द्र मोदी के नए रूप वरुण गाधी का जमकर विरोध करे तभी यहाँ कि आबोहवा में ताजगी आएगी । इकबाल की ये पंक्तिया आज भी उतनी ही प्रासंगिक है ...
सारे जहा से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।
हम बुलबुले है इसके ये गुल्सिता हमारा ।

मजहब नही सिखाता आपस में बैर रखना ,
हिन्दी है हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा।

22 comments:

Anonymous said...

भईये, जिस इकबाल ने सारे जहां से अच्छा लिखा था वो तो लिखकर पाकिस्तान भाग गया..

हम ही कम्बख्त इसे गाये जा रहे हैं

अनिल कान्त said...

bas dharm ki baat karwa lo...gareebi ko hatana hai, samaj ko sudharna hai, balatkaar na ho aisa karna hai..........

संदीप said...
This comment has been removed by the author.
संदीप said...

यह गुमनाम बे-इक़बाल साहब जहर उगलने वाले बे-अक्‍ल भी हैं।
वैसे मित्र संसदीय राजनीति के हमाम में सभी नंगे हैं। चुनाव आने वाले हैं तो इनका नंगा नाच होगा ही। और बे-इकबाल साहब जैसे लोग उस पर लहालोट भी होंगे।
मजदूर हिंदू हो या मुसलमान उसके साथ रोज अमानवीय बर्ताव किया जाता है, हाथ भी उठाया जाता है। तब ये लोग नहीं बोलते। हिंदू और मुसलमान मजदूरों को नौकरियों से निकाल दिया जाता ळै, बच्‍चों को शिक्षा नहीं मिलती, अच्‍छा स्‍वास्‍थ्‍य नहीं मिलता, लेकिन ये लोग नहीं बोलते।

बोलेंगे भी क्‍यों, असली मकसद तो हिंदू-मुसलमान-ईसाई-सिख के नाम पर असली मुद्दों से ध्‍यान हटाना जो है।

अनुनाद सिंह said...

भारत के कम्युनिस्ट सबसे अधिक देशद्रोही और पाक-चीन-परस्त हैं। इन्होने भारत को बंगलादेशियों से भर दिया। गलत नीतियों की वकालत करके इन्होने देश को पिछड़ा बना दिया।

अनुनाद सिंह said...

और हाँ, बे-इकबाल की बात में दम है। इसे हवा में उड़ाना ठीक नहीं है। कोई उचित जवाब हो तो देना चाहिये।

Anonymous said...

क्यों भाई संदीप बे-अक्ल में हूं या अक्ल से पैदल तुम हो?
क्या इकबाल पाकिस्तान भाग कर नहीं चला गया था?

इसके अलावा मैंने क्या कहा था जो तुम अपनी लाल पैंट फाड़कर बाहर निकल पड़े?

निशाचर said...

भारत का विभाजन ही धार्मिक आधार पर हुआ था। जब मुसलमानों को उनके सपनो का देश मिल गया और आज उन्होंने उसे "जन्नत" में तब्दील भी कर लिया है तो भारत में रहने वाले मुसलमानों को क्या हक़ है कि वे हिन्दुओं पर धौंस जमायें।

१९१९ में तुर्की में खलीफा को हटाये जाने के विरोध में मुसलमानों ने कांग्रेस और राष्ट्रवादी आन्दोलन से समर्थन वापस ले लिया। उनके लिए भारत से ज्यादा अहमियत थी खलीफा की. इस आन्दोलन के अगुआ थे कांग्रेस के "पोस्टर ब्वॉय" तथाकथित राष्ट्रवादी मुस्लिम नेता मौलाना अबुल कलाम आजाद. गांधीजी ने घुटने टेक दिए और उन्हें कांग्रेस के साथ रखने के एवज में खिलाफत आन्दोलन को कांग्रेस का समर्थन देना मंजूर किया (यही नीति कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर तक कांग्रेस ने आज भी अपना रखी है -यानि देश के साथ रहने के एवज में रिश्वत).

जहाँ तक मोदी को गाली देने का प्रश्न है तो आजकल छद्म सेकुलर तबके में - चाहे वह मीडिया हो, राजनीतिज्ञ हो, या फिर स्वयम्भू बुद्धजीवी वर्ग , यह एक फैशन सा बन गया है. आप मोदी और हिन्दुओं को जितना ज्यादा गरिया सकेंगे आप उतने ही ज्यादा 'प्रगतिशील और सेकुलर' कहलायेंगे.

क्या कोई स्वयम्भू सेकुलर इन प्रश्नों के उत्तर देगा?
१. १९९१-२००१ के दशक में हिन्दुओं का जनसँख्या प्रतिशत घटकर ८५ से ८० हो गया जबकि मुसलमानों का जनसँख्या प्रतिशत बढ़कर १० से १३ हो गया। क्या परिवार नियोजन का ठेका केवल हिन्दुओं ने ले रखा है? देश की तरक्की के लिए एकलगामी विवाह, परिवार नियोजन, पोलियो टीकाकरण, आधुनिक शिक्षा आदि जितने भी प्रगतिशील अभियान होते है वे सभी "इस्लाम और शरीयत" के ख़िलाफ़ ही पड़ते हैं। क्या मुसलमानों का देश के प्रति कोई कर्तव्य नही है?

२ आतंकवाद का दुनिया में सबसे बड़ा शिकार भारत है। उसे मुसलामानों के घर, मदरसों और दिल में जगह मिलती है । मुस्लमान तर्क देते हैं की चूंकि उनका समाज पिछड़ा हुआ है इसलिए उनके नवयुवक धर्मान्धता और पैसे के लालच में गुमराह हो जाते है। कोई बताये क्या हिंदू का कोई धर्म नहीं होता या उसे पैसे का लालच नही होता। परन्तु हिंदू नवयुवक तो इन परिस्थितिओं में बन्दूक नही उठा लेते। केवल मुसलमान ही क्यों?

३ मुसलमान चाहे वे कितने ही प्रगतिशील क्यों न हों और चाहे भारतीय जनता ने उन्हें सर आँखों पर ही क्यों न बैठा रखा हो, गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त पाए जाने पर अल्पसंख्यक होने के नाते उत्पीडन होने का रोना रोने लगते हैं (अजहरुद्दीन और सलमान खान इसके सबसे बड़े उदहारण हैं )। इसके पीछे कौन सी मानसिकता काम करती है?

सवाल दर्जनों हैं परन्तु अगर आप "सेकुलरिस्म " का चश्मा उतार कर आत्म मंथन करें तो यही आपको जगाने के लिए काफ़ी हैं..................

संदीप said...

बे-इकबाल साहब... इकबाल के गीत को गाने का दुख है तो उसकी पंक्ति, मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, को गलत मानते होंगे, यानि यह भी मानते होंगे कि मजहब बैर रखना सिखाता है...यदि ऐसा है तो इसके आगे क्‍या कहा जाए

और मैंने आपके तर्क की बात की थी, खाकी चड्डी आदि शब्‍दों का इस्‍तेमाल भी नहीं किया, लेकिन आप लोग कुतर्क की उसी पुरानी पद्धति का इस्‍तेमाल करने पर उतर आते हैं जिसमें किसी तर्क का जवाब देने के बजाय किसी पर भद्दे ढंग से व्‍यक्तिगत हमला शुरू कर दो, खैर यह पुराना तरीका है, कोई नया तरीका खोजिए
जहां तक अनुनाद भाई की बात है, उन्‍हें लगता है कि मैंने बे-इकबाल साहब की बातों को हवा में उड़ा दिया, लेकिन उन्‍होंने भी मेरे तर्कों का जवाब नहीं दिया
और सीधे कम्‍युनिस्‍टों को गरियाने लगे, और कम्‍युनिस्‍टों ने देशद्रोह किया या नहीं और संघ, आडवाणी, वाजपेयी अभी तक क्‍या करते आए हैं, इसको जानने के लिए थोड़ा सा इतिहास ही पढ़ लिया होता तो शायद मदद मिलती। वैसे यदि आप भाकपा, माकपा, माले आदि संगठनों के नेताओं को कम्‍युनिस्‍ट मानते हैं तो पहले यह ही जान लीजिए कि कम्‍युनिज्‍म क्‍या है, और यह कि इन्‍हें संशोधनवादी कहा जाता है। खैर आप जान भी जाएंगे तो भी ऐसा नहीं लगता कि आप लोग कुतर्क करना छोड़ देंगे।

निशाचर साहब.... आपने जो बातें कही हैं वह संघ अपने जन्‍म के समय शाखाओं आदि के जरिए प्रचारित करता रहा है, और हिटलर के प्रचारमंत्री गोएबल की इस नीति पर अमल करता है कि एक झूठ को सौ बार कहो तो वह सच बन जाता है।
हो सकता है कि मोदी को गरियाना फैशन भी बन गया हो, क्‍योंकि बाजार व्‍यवस्‍था में प्रगतिशीलता का भी बाजार होता है, लेकिन इससे आप तथ्‍यों की अनदेखी नहीं कर सकते और किसी के कुकृत्‍यों को छिपा नहीं सकते।
खैर, आप लोग मिलजुल कर धार्मिक कट्टपं‍थियों की खिलाफ लिखी जाने वाली हर पोस्‍ट पर हमला बोलते रहिए, इससे सिर्फ आप लोगों की तिलमिलाहट ही जाहिर होती है।

Kapil said...

अरे महाराज वरूण गांधी, यह क्‍या कह दिया चुनावों के वक्‍त में आपने। अभी कल ही तो सुदर्शन जी ने मौलवियों को अच्‍छी तनख्‍वाह देने की मांग की थी और तुमने आज सारा खेल ही बिगाड़ दिया। अब देते रहो सफाई। अरे अभी चुनावों का वक्‍त है भाई और अपन लोगों की हालत ज्‍यादा पतली है। इन मुसलमानों को थोड़ा फुसलाना पड़ेगा, वरना अडवाणी जी टापते रह जायेंगे। बाकी तो तुम जानते ही हो, तुम्‍हारे पिताश्री ने दिल्‍ली के तुकर्मान गेट में क्‍या सफाया करवाया था। और चिंता मत करो, चुनाव हो जाने दो फिर मोदी जी से कहकर विशेष ट्रेनिंग तुम्‍हें दिलवाएंगे। और तुम लोग बे-इकबाल और अनुनाद क्‍यों टांग अड्रा रहे हो भाई। चुनाव का वक्‍त है जरा संभल कर बोलो, हां गड्रबड्र करने वालों की लिस्‍ट जरूर बना लेना।

अनुनाद सिंह said...

भैया मणेन्द्र,
ये नई बात पता चली कि माकपा, भाकपा, माले आदि कम्युनिस्ट नहीं हैं। कल यह मत कह देना कि सोवियत संघ में भी जो था वह कम्युनिज्म नहीं था। चलिये यही बता दीजिये कि दुनिया में कम्यूनिज्म है कहाँ?
और "मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर करना" यह कितना सही है यह जानने के लिये कभी कुरान का कोई एक पन्ना पढ़ लीजिये। कम्यूनिस्ट जो "वर्ग संघर्ष" की बात करते थे, वह "बैर" नहीं तो क्या था?

संदीप said...

अनुनाद भाई,


यदि आपके लिए यह नयी बात है, तब तो आपको वाकई में पहले बुनियादी मार्क्‍सवाद ही समझ लेना चाहिए, फिर गरियाने का अभियान शुरू करना चाहिए, और सोवियत संघ में कम्‍युनिज्‍़म था ही नहीं वहां समाजवाद था वह भी ख्रुश्‍चेव के सत्‍ता में आने से पहले।
और हां, कम्‍युनिस्‍ट (संशोधनवादी नहीं) जरूर बैर की बात करते हैं, लेकिन किसी व्‍यक्ति से नहीं बल्कि वर्ग से। वे इस बात को छिपाते भी नहीं हैं। हां, जिस वर्ग के खिलाफ वे संघर्ष की बात करते हैं, वह वर्ग और उसके टुकड़खोर भारत में बमुश्किल तमाम 20 फीसदी है। कम्‍युनिस्‍ट भारत के उन 84 करोड़ लोगों की बात करते हैं जो 20 रुपये रोज पर गुजारा कर रहे हैं।

खैर, अब इस बहस को नमस्‍कार किया जाए, क्‍योंकि आप लोग वाकई कई चीज़ों को नहीं जानते, फिर कोई भी तथ्‍य बताने पर आप कहेंगे कि नयी बात पता चली। वैसे आप भी किन चक्‍करों में पड़े हैं नौकरी, शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, भोजन, पानी जैसी बुनियादी चीज़ों की जरूरत हिंदुओं को भी होती है और मुसलमानों को भी, पहले इन जरूरतों के लिए तो आवाज उठाइए। बाकी‍ बातें बाद में करते रहिएगा।

संजय बेंगाणी said...

मजहब नहीं सीखाता....क्या बकवास है? अगर यही बात थी तो इसे लिखने वाले ने पाकिस्तान का विचार कैसे रखा? क्यों मजहब के आधार पर भारत के टूकड़े हुए? क्या हिन्दू अपना अलग देश चाहते थे?

RAJIV MAHESHWARI said...

लगे रहो वरुण बेटा राम भली करेगे....

गोविन्द K. प्रजापत "काका" बानसी said...

घुम-फिर कर ये बातें नरेन्द्र मोदी पर ही क्युं आती है????

निशाचर said...

संदीप जी, आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि मैं कभी संघ या किसी भी राजनितिक, सामाजिक संगठन का न तो सदस्य रहा हूँ और न ही इनके सदस्यों के संपर्क में रहा हूँ.

मैं इतिहास का विद्यार्थी हूँ और जानता हूँ कि सभ्यताओं का इतिहास पाठ्यपुस्तकों से इतर और कभी - कभी एकदम विपरीत भी होता है.

आपने मेरी बातों को गोएबल्स के प्रचारतंत्र की संज्ञा दे दी. समस्या यही है कि आप गोएबल्स को तो जानते हैं परन्तु अपने देश के इतिहास से अनभिज्ञ हैं. मैंने खिलाफत आन्दोलन के विषय में जो कुछ कहा वह आधुनिक भारतीय इतिहास की किसी भी पाठ्यपुस्तक में आप स्वयं पढ़ सकते हैं और इसे भारतीय इतिहास कांग्रेस और केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय का अनुमोदन प्राप्त है.

आप तर्क की बात करतें हैं परन्तु कठिन प्रश्नों से बचना चाहते हैं.
आप कहते हैं "मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना" . बिलकुल ठीक बात है. परन्तु क्या इस बात को आप मुसलमानों को भी समझाने की कृपा करेंगे या फिर हिन्दुओं को आत्मरक्षा का भी अधिकार नहीं है.

जनसँख्या के जो आंकडे मैंने दिए थे वह २००१ की जनगणना से हैं और भारत सरकार के आंकड़े हैं.

मेरे परिवार से आधा दर्जन लोग सेना में हैं . एक कारगिल और एक कश्मीर में आतंकवादी मुठभेड़ में शहीद हो चुकें हैं. संदीप जी, युद्ध और आतंकवाद का दंश वही महसूस कर सकता है जिसने उसे झेला हो. देशभक्तों को कुत्ता (सुभाष चन्द्र बोस, संदीप उन्नीकृष्णन) कहने वाले कम्युनिस्ट इसे क्या समझेंगे.

आप ८४ करोड़ भारतवासियों की बात करते हैं जो २० रुपये से कम पर गुजर कर रहे हैं. ५५ साल देश में कांग्रेस की "सेकुलर" सरकार रही है और पश्चिम बंगाल में पिछले ३० वर्षों से "महासेकुलर" कम्युनिस्ट सरकार है. क्या पश्चिम बंगाल में रामराज्य आ गया है ? क्या आप इस बात से इंकार कर सकते हैं पश्चिम बंगाल के सभी सीमावर्ती जिले, असम और त्रिपुरा के अधिकांश जिले बंगलादेशी मुसलमान बहुल हो चुके हैं और ऐसा वह की राज्य सरकारों की शह पर हो रहा है. आप देश की जनता की खून पसीने की कमाई को टैक्स के रूप में लेकर उन परजीवियों को दान कर रहे है जो सिर्फ हमारा खून ही नहीं चूस रहे, हमें मिटा देने पर आमादा हैं.

आपने मेरे एक भी प्रश्न का उत्तर देने का कष्ट नहीं उठाया यह जताता है कि आप के पास उत्तर हैं ही नहीं.

अगर तर्क आधारित बहस करनी है तो दिमाग को विचारों के लिए खुला रखिये. बुद्धजीवी होने का मुगालता मत पालिए और दुसरे के विचारों को ठंडे दिमाग से सुनकर उसका प्रत्युत्तर दीजिये. बहस से दूर भागना यही बताता है कि आप के पास तर्क हैं ही नहीं.............

गजेन्द्र सिंह भाटी said...

To Marinder ...

You are really getting very good comments.

Go great...

Anonymous said...

shriman sandeep bhai sahab ji,
main sangh se jyada to nahin parantu itne samay ke liye jaroor juda raha jitne me use achchhe se samjh sakta tha, aapki jankari ke liye bata doon ki kisi ko gali dene ke liye media ya doosre logon ki baat sunne se achchha hai ki swayam uski tahkikat karen. mere samne kabhi sangh ke kisi vyakti ne muslim bhaiyon ki alochna nahin ki
aur main shuruat se shishumandir aur vidyamandiron me muslim doston ke sath padha hoon, ye sangh ke itihas ka hi nateeja hai ki aaj mujhe apne desh pe garv hai aur apne watan se door rah ke bhi main uski sanskrati na to bhoola hoon na doosron ko bhoolne deta hoon.
haan iyihas me aap jaise logon ko jaichand avashya kahte hain. rahi baat varun gandhi ki to lekhak mahodaya ko shayad pata nahin ki wo abhi tak muljim hai mujrim nahin, haan agar wo CD unhi ne record ki ho ya doctored ki ho to unhe chilla ke kahne ka poora haq hai. agar padhe likhe aur samajhdar patrakar banna chahte hain to ye bhi yaad rakhen ki-'jisko na nij gaurav tatha niz desh ka abhiman hai, wah nar nahin hai pashu nira, aur mritak saman hai. aur dukh hai ki Marhoom Iqbaal ji ko aap apni vyaktigat bakwason ke beech jaleel kar rahe hain.

Dipak 'Mashal'
Belfast UK

ashwani said...

good

Anonymous said...

good

honesty project democracy said...

बहुत ही अच्छी सोच जिसकी आज देश को जरूरत है /

VIJAY KUMAR GARG said...

संदीप आप यही बता दो की कम्युनिस्टी कीड़ो ने हमारे महानतम क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को "टोजो का कुत्ता" कहा था या नहीं |
यदि कहा था तो अब बताइये इन कीड़ो का क्या किया जाय ?