Sunday, March 15, 2009

मशालें लेकर चलना ...



मशालें लेकर चलना,कि जब तक रात बाकी है

संभल कर हर कदम रखना,कि जबतक रात बाकी है

मिले मंसूर को शूली ,जहर सुकरात के हिस्से

रहेगा जुर्म सच कहना,कि जब तक रात बाकी है

पसीने कि तो तुम छोड़ो, लहू मजदूर का यारो

सस्ता पानी सा बहेगा, जब तक रात बाकी है

तेरे मस्तक पे होगा हर पल विद्रोह का निशां

नही ये जोश कम होगा,कि जब तक रात बाकी है

अंधेरों की अदालत में,हैं क्या फरियाद का फायदा

तू कर संग्राम ऐ साथी, की जब तक रात बाकी है ।

मशालें लेकर चलना ...

(यह आज़ादी बचाओ आन्दोलन का गीतायन है । बताते चले की यह पेप्सी -कोका कोला के ख़िलाफ़ राष्ट्र व्यापी आन्दोलन है । पिछले ४ वर्षो से मै भी इलाहाबाद में प्रो.बनवारी लाल शर्मा के नेतृत्व में इससे जुदा हुआ हूँ। )

6 comments:

अनिल कान्त said...

बहुत ही प्रभावशाली लिखा है आपने

sonal said...

bahut purani kavita hai.....

Unknown said...

'मशालें ले के चलना है'के रचनाकार, शीर्षक के बारे में बता पाएंगे क्या आप और साथ ही आपके पास निम्न कविताओं/जनगीत/क्रांतिकारी गीतों के रचनाकार के नाम सहित होंगे क्या :

(1) हम कहेंगे अमन हम कहेंगे मोहब्बत
(2) अरे न ही सुनाओ लहू की कथा
(3) कौन हैं हम और हैं आये कहाँ से
(4) ये सितम और के हम फूल कहें खारों को
(5) ये क्यों हो रहा है जो न होना था हमारे दौर में
(6) ये कैसा धर्मसंकट है धर्मरक्षक
(7) बोले भाई बम
(8) जब रात गए मेरे गाँव की सड़क पर धड़ धड़ करती मोटर सायकलें हो

हों तो बताईयेगा ज़रूर मेरे फेसबुक मैसेंजर पर : vickytiwari120582@gmail.com

Own Beat💅 said...

पापा से सुनी है ये.बड़ा गजब गाते थे पापा मैं छोटी सी थी..

Anonymous said...

बहुत ही सुंदर गीत है जो की दिलो में एक नई जोश और जज्बा पैदा करती है

Anonymous said...

बहुत हि खुब अच्छा सगीत है