Saturday, March 14, 2009

तीसरा मोर्चा :मिथक और यथार्थ


भारत में चुनावी महापर्व अर्थात आम चुनाव आने से पहले गठजोड़ का खेल शुरू हो जाता है। विभिन्न क्षेत्रीय पार्टियों को अपने पाले में लाने की जुगत में कांग्रेस और भाजपा व्यस्त हो जाते है। इसी बीच कभी-कभी तीसरे मोर्चे की बात भी सुनायी दे जाती है।1977 में भारत के राजनीतिक इतिहास में पहली बार कांग्रेस विरोध के दम पर सत्ता में आयी जनता पार्टी की सरकार एक ऐतिहासिक घटना थी। इस सरकार को अमली जामा पॅहुचाने वाले लोकनायक जयप्रकाश ने कहा था कि जनता पार्टी का मतलब भारत की आम जनता से है। कांगेस के विद्रोही नेता मोरार जी देसाई प्रधानमंत्री बने। लेकिन राजनीतिक महत्वकांक्षा की सिर फुटट्वल से जल्द ही यह सरकार पदच्युत हो गयी।इसके 12 साल बाद 1989 में कांग्रेस के ही असंतुस्ट नेता वी।पी।सिंह ने सत्ता परिर्वतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। बोफोर्स मामले मे राजीव गांधी से दो-दो हाथ करने से भी नही चूके। राजा मांडा के नाम से विख्यात वियवनाथ प्रताप सिंह हालाकि बहुत कम समय के लिये प्रधानमंत्री रहे लेकिन मंडल कमीसन लागू कर इतिहास पुरूष बन गये। इसके बाद बलिया के सांसद युवा तुर्क,खाटी समाजवादी नेता चंद्रशेखर मात्र चार दर्जन सांसदो के बल पर लाल किले के प्राचीर से तिरंगा झंडा फहराने में सफल रहे। लेकिन तत्कालीन अवसरवाद के तहत प्रधानमंत्री बने चंद्रशेखर भी स्थिर सरकार देने में विफल रहें । गए घटना के मात्र सात साल बाद 1996 में एक बार फिर कंाग्रेस की बैसाखी पर वी.पी.सिंह के सुझाव पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे एच.डी.देवगौड़ा तीसरे मोर्चे से प्रधानमंत्री बने।असंतुस्टों की मार झेलते हुये शीग्र ही उन्हे भी पद छोड़ना पड़ा। जिसके फलस्वरुप बेहद कम चर्चा में रहने वाले इंद्र कुमार गुजराल सौभाग्यवस प्रधानमंत्री बने।लेकिन उनका कंधा भी सहयोगियों के बोझ न ढ़ो सका और दो साल के अंदर ही चुनाव हो गए ।
ek बार फिर तीसरे मोर्चे की अटकले चर्चा में है।अभी एक साल पहले ही मुलायम सिंह के अगुआई में तीसरे मोर्चे का गठन हुआ था।जिसमें चंद्र बाबू नायडू,जयललिता,ओम प्रकाश चौटाला ,असम गण परिसद के गोस्वामी सहित झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी थे।लखनऊ में आयोजित रैली में सभी ने एकजुट होकर नया विकल्प देने का संकल्प किया था। लेकिन जल्द ही यह गठबंधन छिन्न-भिन्न हो गया। कुछ को छोड़ कर लगभग यही दल एक बार फिर वाम दल के प्रमुख प्रकाश करात के नेतत्व में नया गुल खिलाने का प्रयास कर रहे है। लेकिन यहा समस्यायें भी कई तरह की है। सबसे विकट समस्या प्रधानमंत्री पद को लेकर है। देवगौड़ा की अपनी हसरतें है जबकि उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती तो अभी से ही प्रधानमंत्री पद के हसीन सपनें देख रही है।यदि तीसरे मोर्चे के सदस्यों पर नज़र डाले तो इनका अभूतपूर्व इतिहास सामने आता है। पहला नाम वाम दलों का है जिनकी कांग्रेस और भाजपा से दूर रहने की अपनी मजबूरी है।कांग्रेस नीत गठबंधन मे वाम दल बार-बार घुड़की देते रहे है । संप्रग सरकार में वाम दलो ने किस तरह गठबंधन धर्म निभाया यह किसी से छुपा नही है। बसपा का तो गठबंधन तोड़ने का स्वर्णिम इतिहास रहा है। भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बनी मायावती ने किस तरह दो बार भाजपा को धोखा दिया इसकी याद आज भी लोगो के जे़हन में ताजा है।इतना ही नही समाजवादी पार्टी और कांग्रेस से भी इसका गठबंधन टूट चुका है। मोदी का प्रचार कर मायावती स्वंय को किस तरह धर्मनिरपेक्ष बताती है,यह समझ से परे है! रही बात तेलगु देशम पार्टी की ,तो पिछले चुनाव मे पाँच सीट और विधानसभा में बेहद निराशाजनक प्रदर्शन के बाद वह किस स्तर पर है यह सबको पता है। आंध्र प्रदेश की राजनीति में चिरंजीवी के आने से सत्ता समीकरण बिगड़ गये है।कभी तीसरे मोर्चे के संयोजक रहे चंद्रबाबू नायडू ,ने एनडीए के शासन में खूब मलाई काटी और अब अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिये एक बार फिर तीसरे मोर्चे की शरण में पहुच गये है ।

इतना तो तय है कि तीसरे मोर्चे के नाम पर गठित सभी दल चुनाव के बाद जमकर सौदेबाजी करने वाले है। क्योकि जब तक तीसरे मोर्चे की एक व्यापक और दूरदर्शी सोच के साथ लोगो की बेहतरी के लिये कुछ अलग योजना नही होगी तब तक यह भटकाव की ओर ही अग्रसर रहेगा। सबसे पहले इस मोर्चे को अपनी विस्वसनीयता कायम करनी होगी जिससे विषम परिस्थितियों मे भी यह बना रहे। इसे जन आंदोलनो की नब्ज थाम कर अपना प्रसार करना होगा, तब कहीं रास्ट्रीय स्तर पर यह विकल्प के रुप में उभर सकेगा।

2 comments:

ashok kr. singh said...

you have very good thinking mr. mariendra. i think you should give some option for your country. you go ahead and make a national party. i will back you. i will be first to cast my vote in your foavour and sameer also vote for you. here i offer my well wishes to you.

Unknown said...

bhai mujhe tumare vichar kafi aache lage..mai inki tarif bhi karta hoon .saath hi inse sahmat bhi hoon...aaj vastav me hamare desh ko aise party ki jarurat hai jo hamare desh ke liye kuch kare.aur is desh ko vastav me loktantrik banaye....