पिछले दिनों महिला दिवस पर महिला सशक्तिकरण पर जम कर बातें हुयी । विभिन्न माध्यमों के के द्वारा महिलाओं की एक गुलाबी छवि प्रस्तुत की गई जिसमे यह बताया गया की महिलाएं तेजी से हर क्षेत्र में उभर रही है । समाचारपत्रों और इलेक्ट्रॉनिक चैनलों ने कई महिलाओं के बारे में लिखा और दिखाया । महामहिम रास्ट्रपति ,कांग्रेस पार्टी की मुखिया सोनिया गाँधी ,सायना नेहवाल ,सानिया मिर्जा और इन्द्रा नूयी जैसी अनेको महिलाएं छायी रही । मुझे इससे कोई आपत्ति नही लेकिन इसी दिन एक महत्वपूर्ण घटना हुयी जिस पर मीडिया ने कोई सुध नही ली जिसका मुझे बेहद कष्ट है ।
पिछले ८ वर्षो से आमरण अनशन कर रही शर्मीला इरोम को न्यायालय ने प्रतीकात्मक रूप से बरी कर दिया । लेकिन कुछ समय बाद उन्हें फिर पुलिस कस्टडी में रख दिया गया । पूर्वोत्तर के बारे में दोहरा मापदंड अपनाने के कारन इसकी कोई चर्चा ही नही हुयी । यह बहुत दुर्भाग्य की बात है विश्व में अपने तरह का यह अनूठा संघर्ष है। फिर भी अधिकांश देशवासी इरोम के बारे में जानते ही नही । गाँधी के देश में जब उनके सामानों को भारत लाने की बात पर एक बहस छिडी है , ऐसी में उनके सिधान्तोको को आज भी जीवित रखने वली महिला पूरी तरह उपेक्षित है ।
मणिपुर की ३६ वर्षीया कवियत्री ,चित्रकार,और गाँधी वादी इरोम शर्मीला चानू ४ नवम्बर २००० से आमरण अनशन पर है । उनकी नाक में नली डालकर जबरजस्ती तरल पदार्थ दिया जा रहा है , जिससे वो जीवित रह सके। उनकी स्पस्ट मांग है, कि सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून १९५८ रद्द किया जाए ताकि पूर्वोत्तर में इस कानून के बर्बरता पूर्ण इस्तेमाल को रोका जा सके । इम्फाल से करीब १५ किलो मीटर दूर २ नवम्बर २००० को सुरक्षा बलों ने एक बस स्टाप पर खड़े निर्दोष लोगों पर गोलाबारी की जिसमे दस लोग मारे गए । इसी घटना के विरोध में इरोम ने भूख हड़ताल कर दिया। २१ नवम्बर को उसे 'आत्महत्या का प्रयास ' करने के आरोप में गिरिफ्तार कर दिया गया। उसे इम्फाल के ही जवाहर लाल नेहरू अस्पताल में भरती कराकर प्रशासन उसे जबरजस्ती नाक के रास्ते खिलाने लगा । इस घटना के ६ साल तक वह वही रही। न्यायिक हिरासत में रहते हुए उसने अपना अनशन तोड़ने या जमानत करने से इनकार कर दिया । जैसा की नियम है एक साल पूरा होने पर अदालत ने उसे रिहा कर दिया , क्योकि आत्महत्या के प्रयास के मामले में उसे अदिकतम एक साल की सज़ा दी जा सकती है । उसके बिना पानी के अनशन जारी रखने के कारण बार-बार रिहा होने के दो-तीन दिन के भीतर गिरिफ्तार कर लिया जाता था ।
२००६ में ३ अक्टूबर में अदालत ने उसे फिर बरी कर दिया ,जिसके अगले दिन शर्मीला ने सुरक्षा बलों को चकमा देते हुए मणिपुर से बहार निकल आई। इस मुद्दे पर राष्ट्र का ध्यान आकर्षित करने के लिए दिल्ली में जंतर-मंतर पर अनशन जारी रखा। तीन दिन के बाद आधी रात को पुलिस ने पकड़कर एम्स में भरती करा दिया। और यह क्रम आज भी जारी है ...........सत्य और न्याय के लिए संघर्स करने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में यही अंजाम होगा यह विचार का प्रश्न है ? इरोम शर्मीला अपने अनशन से लोकतान्त्रिक व्यवस्था को मजबूत कर रही है ,आम जन मानस की इस प्रकरण पर चुप्पी खतरनाक भविष्य के संकेत दे रही है !
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