Saturday, January 24, 2009

लचर पटकथा से चांदनी चौक टू चाइना


पिछले कुछ वर्षोँ से लगातार अच्छी फिल्मों में अभिनय कर रहे अक्षय कुमार ने एक कमजोर प्रस्तुति दी है। हम बात कर रहें हैं, ‘चादंनी चौक टू चाइना‘ की।फिल्म के निर्देशक निखिल आडवानी और मुख्य कलाकार अक्षय कुमार, दीपिका पादुकोण,मिथुन चक्रवर्ती हैं। फिल्म की कहानी सिद्धू नामक एक युवक के चांदनी चौक से चाइना पहुंचने की घटना पर आधारित है।संवाद और पटकथा 90 के शुरूआती दशक के फिल्मों की याद दिलाते हैं। प्रारम्भ के ही 30 मिनट में पूरी कहानी समझ में आ जाती है। एक्शन और हास्य दोनों विधाओं मे अक्षय कुमार सामान्य ही दिखे। दीपिका पादुकोण के कुछ स्टंट सीन उनकी अभी तक बन गयी इमेज को तोड़ते दिखाई दिये। फिल्म में कई जगह अश्लील शब्दों का प्रयोग फूहड़ता को दर्शाता है। दीपिका ने फिल्म में डबल रोल का ठीक-ठाक प्रदर्शन किया है। मिथुन के वही पुराने घिसे-पिटे संवाद फिल्म को उबाऊ बनाते है । चापिस्टिक चरित्र फिल्म में कई जगह मनोरंजन करने का प्रयास करता है। चीन की दीवार की हल्की झलक, बेहतरीन काॅस्ट्यूम डिजाइन कुछ देखने लायक चीजें हैं। फिल्म के संगीत और गीत काफी प्रभावी रहे। कैलाश खेर का सूफियाना अंदाज फिल्म में नये तरह की ताजगी भरता है। ’’ नाम है सिद्धूः यस एच आई डीएचयू ’’ गीत बेहद मनोरंजक और कर्णप्रिय लगा। अंत में निर्देशक ने संभावित ’’ चांदनी चौक टू अफ्रीका ’’ बनाने की बात प्रतीक में कही है। ऐसे में दर्शकों की उम्मीदों पर खरा न उतरने के बाद चांदनी चौक टू चाइना की सीक्वेल क्या गुल खिलाएगी ? यह देखना बाकी है।

Wednesday, January 21, 2009

भाजपा का संकट -मुलायम का कल्याण

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का भाजपा से इस्तीफा देना पार्टी के लिए नया संकट है। पिछले कई महीनों से वह असंतुष्ट चल रहे थे । उनका कहना था कि टिकट बटवारे से लेकर कई मुद्दों पर उनकी उपेछा कि जा रही थी । उत्तर प्रदेश में पिछले दस वर्षो से भाजपा में किसी भी पिछडे या दलित नेता का उभार नही हो पा रहा। जोकि भाजपा के लिए आगामी लोक सभा चुनाव के लिए सुभ संकेत नही है ।ओम प्रकाश सिंह ,संतोष गंगवार जैसे कद्दावर नेता उपेछित ही रहे है । कभी अनुसाशन का डंका पीटने वाली पार्टी में लगातार पलायन जारी है । मदन लाल खुराना , बाबु लाल मरांडी , उमा भारती, गोविन्दाचार्य जैसे लोगो के पार्टी से जाने के बाद यह कुछ ख़ास लोगो कि पार्टी बनती जा रही है । रास्ट्रीय स्टार पर उभरे नेताओं का जनाधार बेहद सिकुड़ा हुआ है ।

राजस्थान के भाजपा सांसद द्वारा टिकट वितरण में खरीद फरोख्त, संसद का नोट कांड , ऑपरेशन चक्रवुह जैसी घटनाएँ भाजपा के सुचिता पर सवाल खड़ा करती है । पूर्व राष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत के हालिया चुनाव लड़ने कि बात भी भाजपा के लिए नया संकट है । कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश में भाजपा कि स्थिति सुधरने पर ही पी यम् इन वेटिंग अडवाणी के सपने हकीकत में बदल सकते है । परतु पार्टी कीआतंरिक उलयम , मुलायम-कल्याण-कांग्रेस गठबंधन और मायावती कि सोशल इंजीनियरिंग उत्तर प्रदेश में क्या गुल खिलाएगी ये तो वक्त ही बताएगा ।