उत्तर प्रदेश का सिद्दार्थ नगर जिला नेपाल सीमा से सटा हुआ है। वहां का मुख्यालय नौगढ़ है। नवंबर माह के अंतिम सप्ताह में कुछ कारण से मैं वहां गया था। यह समय किसानों के लिये व्यस्तापूर्ण रहता है, क्योंकि धान की कटाई के तुरंत बाद गेहुं की बुआई शुरु हो जाती है। पहले तो किसानों के सामने बीज की समस्या छाई रही और अब खाद की किल्लत से दो – चार होना पड़ रहा है।
26 नवंबर को तहसील के बगल सहकारी समिति पर गया। पिछले कई दिनों से यह सूचना मिल रही थी, कि आज खाद मिलेगा। वहां पहुंच कर ऐसा लगा जैसे गांव के किसी मेले में पहुंच गया हूं। सैकड़ों की भीड़ में अनेक तरह के लोग थे। कुछ की फटी चप्पलें उनकी गरीबी बता रही थी। वहीं दूसरी ओर कुछ की वेश – भूषा उनके संभ्रांत होने की घोषणा कर रही थी। किसानों से पूछने पर पता चला कि कई लोग छह बजे सुबह से ही खाद के इंतजार में लाईन में लगे हैं।
सचिव से पूछने पर पता चला कि 300 बोरी डीएपी खाद आई है। जो लोग समिति के सदस्य है उन्हें ही पास बुक के आधार पर दो – दो बोरी खाद दी जायेगी। खाद बंटना शुरु हुआ तो रुपया जमा करने वाले कर्मचारी ने बताया कि खाद का मुल्य 471 रुपये है। जबकि रुपया लेते समय वह 480 रुपये लेने लगा। कई लोगों द्वारा बाकी के नौ रुपया मांगने पर उसने छुट्टे न होने का हवाला दिया। कुछ किसानों द्वारा अधिक दबाव डालने पर खाद बाद में लेने को कहने लगा। ऐसी स्थिति में मजबूरी वश 480 रुपये का भुगतान करना पड़ा। इसी बीच कुछ किसानों ने खाद का वजन कम होने का शक जाहिर किया। पहले तो सचिव ने ना - नुकुर किया। परंतु माहौल की गंभीरता और किसानों की संख्या देख कर तौल के लिये राजी हुआ। जिसके फलस्वरुप कई बोरों में 3 से 4 किलो खाद कम पाई गयी। पहले तो किसानों ने कम खाद लेने से मना कर दिया। लेकिन खाद की किल्लत को सोचकर कम खाद स्वीकार कर लिया। इस विषय में वहां के कर्मचारियों ने कहा कि यह बात हम लिखकर अन्य अधिकारियों को भेज देंगे। कई किसान ने यह भी बताया कि ऐसे अनेक लोग हैं जो समिति के सदस्य नहीं है इसके बावजूद उन्हें खाद पहले मिल जा रही है।
सिद्धार्थनगर, महाराजगंज, संत कबीरनगर, बहराइच, बलरामपुर, गोंडा सहित पूर्वांचल के अन्य जिलों में खाद की जबरदस्त किल्लत है। जिसका प्रमुख कारण भारत नेपाल की खुली सीमा है। आये दिन भारी मात्रा में खादों की तस्करी इसी रास्ते होती है। खाद तस्करी का प्रमुख कारण भारत की अपेक्षा नेपाल में खाद का महंगा होना है। भारत में 251 रुपये प्रति बोरी वाली यूरिया नेपाल में 600 रुपये, 471 रुपये प्रति बोरी वाली डीएपी नेपाल में 1000 रुपये तथा 327 रुपये प्रति बोरी वाली फास्फोरस खाद नेपाल में 500 रुपये में बिक रही है। छिटपुट रुप से रोज कुछ बोरी खाद सीमा पार करते समय पकड़ ली जाती है। परंतु व्यापक स्तर पर फैले खाद तस्करी को रोकने के लिये सरकार के पुख्ता इंतजाम नहीं है। भारत नेपाल की 15 किलोमीटर खुली सीमा में पर्याप्त संख्या में एसएसबी के जवानों के न होने से निगरानी नही हो पाती है। इतना ही नही भारत के रास्ते नेपाल गयी खाद को निकाल कर नेपाली खाद कंपनियों की बोरी में डाल दी जाती है। भारतीय खादों को नेपाली उर्वरक बनाकर बांगलादेश भेजा जा रहा है। नेपाल में यूरिया का प्रयोग कच्ची शराब बनाने में भी हो रहा है।
किसानों के सम्मुख आज भी सबसे बड़ी समस्या बीज, खाद और सिंचाई है। पूर्वांचल में इतनी बड़े पैमाने पर हो रही भ्रष्टाचार तथा तस्करी पर सरकार अभी तक चुप्पी साधे हुऐ है। सरकार को यह समझना होगा कि जबतक किसानों की बुनियादी समस्याऐ दूर नही होगी तबतक उनके कर्जे माफ करने का कोई फायदा नही होगा। आखिर कबतक गांव के एक गरीब किसान 9 रुपये अधिक देकर प्रत्येक बोरी में 3 किलो खाद कम पाने को अभिशप्त रहेगा। इससे भी बड़ी बात ऐसी वास्तविक समस्याऐ कब चुनावी मुद्दा बनेगी।
मणेन्द्र मिश्रा (मशाल)
छात्र, हिन्दी पत्रकारिता
भारतीय जनसंचार संस्थान
नई दिल्ली 110067